उड़ीसा हाईकोर्ट ने 6 महीने से ज्यादा (27 हफ्ते) की गर्भवती 13 साल की रेप पीड़ित को गर्भपात (अबॉर्शन) की अनुमति दी है।
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वह सिकल सेल एनीमिया और मिर्गी से पीड़ित है। कोर्ट ने माना कि प्रेग्नेंसी से बच्ची के जीवन और सेहत को गंभीर खतरा है।
बीमारियों की वजह से बच्चे को जन्म देना उसके लिए बहुत खतरनाक हो सकता था।
ओडिशा के कंधमाल की रहने वाली पीड़ित अनुसूचित जाति (SC) से है। पिछले साल एक लड़के ने उसके साथ कई बार रेप किया।
धमकियों के कारण उसने किसी को कुछ नहीं बताया। जब बच्ची की तबीयत बिगड़ने लगी, तब मां उसे डॉक्टर के पास ले गई। इसके बाद रेप का मामला सामने आया।
11 फरवरी को पीड़ित के माता-पिता ने FIR दर्ज करवाई। बच्ची की मेडिकल जांच हुई।
जांच में प्रेग्नेंसी और उससे जुड़ी हेल्थ समस्याओं की रिपोर्ट सामने आई।
इसके बाद मामला उड़ीसा हाईकोर्ट पहुंचा, जहां बच्ची के पिता ने गर्भपात की इजाजत मांगी।
पिछले महीने कोर्ट ने बच्ची की जांच के लिए बलरामपुर के MKCG मेडिकल कॉलेज को मेडिकल बोर्ड बनाने का आदेश दिया था। बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि प्रेग्नेंसी से बच्ची के फिजिकल और मेंटल हेल्थ को गंभीर खतरा होगा।
रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने याचिका पर कोई आपत्ति नहीं जताई। सरकार ने कहा कि बच्ची को बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इसके बाद कोर्ट ने गर्भपात की इजाजत दे दी।
कोर्ट ने ओडिशा सरकार को एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) बनाने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि बच्ची का ट्रीटमेंट ठीक से हो। ब्यूरोक्रेसी बाधा न बने और कानून लागू करने वाली एजेंसियां इसे बेहतर तरीके से संभाले। कोर्ट ने आदेश दिया की SOP 6 महीनों के भीतर लागू की जाए।
27 हफ्ते की प्रेग्नेंसी, अबॉर्शन का नियम 24 हफ्ते का पीड़ित 27 महीने से ज्यादा की गर्भवती है, जो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP) 24 हफ्ते की सीमा से ज्यादा है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट में कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन की इजाजत है, जिनमें नाबालिग और रेप पीड़ित शामिल हैं।