आधुनिक भारत के एक महान राजनीतिक-विचारक और शिल्पकार श्री बी पी मंडल की जयंती है। उनको सलाम और शत-शत नमनः-
नोएडाः बी.पी. मंडल ने मंडल कमीशन रिपोर्ट लिख कर बदल दी 60 करोड़ ओबीसी की तकदीर।बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में लिखी गई रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 परसेंट आरक्षण मिला. जिसे मंडल कमीशन के लोकप्रिय नाम से जाना जाता है।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट भारत में सामाजिक लोकतंत्र लाने और 52 फीसदी ओबीसी आबादी को राष्ट्र निर्माण में हिस्सेदार बनाने की आजादी के बाद की सबसे बड़ी पहल साबित हुई, जिससे इन वर्गों के लाखों लोगों को नौकरियां मिलीं और शिक्षा संस्थानों में दाखिला मिला। इससे पिछड़े वर्गों की भारतीय लोकतंत्र में आस्था मजबूत हुई और उनके अंदर ये भरोसा पैदा हुआ कि देश के संसाधनों और अवसरों में उनका भी हिस्सा है।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आने के साथ ही खासकर उत्तर भारत में पिछड़े वर्गों की महत्वाकांक्षा का भी विस्फोट हुआ। राजनीति में उनकी दावेदारी मजबूत हुई और अपनी तकदीर खुद लिखने का जज्बा उनमें पैदा हुआ। 1980 के बाद उत्तर भारत में लालू-मुलायम-नीतीश और पिछड़ी जातियों के तमाम नेताओं की आगे आना इसी पृष्ठभूमि में हुआ है। इसे भारतीय राजनीति की मूक क्रांति या साइलेंट रिवोल्यूशन भी कहा गया क्योंकि इसके जरिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विशाल आबादी की हिस्सेदारी बढ़ी. इस मायने में मंडल कमीशन की रिपोर्ट का युगांतकारी महत्व है।
इस रिपोर्ट के प्रधान रचनाकार बी.पी. मंडल ने इस मामले में भारत की तकदीर लिखने वालों में अपना नाम दर्ज करा लियाः-
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार द्वारा गठित दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष बी.पी. मंडल का जन्म 25 अगस्त, 1918 को बनारस में हुआ था. मुरहो एस्टेट के ज़मींदार होते हुए भी उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में जमकर हिस्सा लिया. वे बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमिटी और एआईसीसी के बिहार से निर्वाचित सदस्य रासबिहारी लाल मंडल के सबसे छोटे पुत्र थे। रासबिहारी बाबू ने यादवों के लिए जनेऊ धारण आन्दोलन चलाया था. यह आंदोलन प्रतिक्रियावादी लग सकता है, लेकिन दरअसल ये स्वाभिमान का आंदोलन 1917 में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड समिति के समक्ष यादवों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए उन्होंने वायसरॉय को परंपरागत ‘सलामी’ देने की जगह उनसे हाथ मिलाया था। उन्होंने सेना में यादवों के लिए रेजिमेंट की मांग भी की थी। उस समय ज्यादातर नेता अपने समुदाय के हितों के साथ जुड़े थे। रासबिहारी बाबू के कामों को भी उसी नजरिए से देखने की जरूरत है।
इस पृष्ठभूमि में बी.पी. मंडल की परवरिश हुई, वे मधेपुरा विधान सभा से 1952 के प्रथम चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी बने और 1952 में बहुत कम उम्र में मधेपुरा से विधानसभा के लिए सदस्य चुने गए. सन 1962 में वे दूसरी बार विधायक बने. इस बीच, 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गांव में दलितों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार के खिलाफ उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे 1967 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य चुने गए।
बी.पी. मंडल 1 फ़रवरी, 1968 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बनेः-
बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद 1 फ़रवरी, 1968 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसके लिए उन्होंने सतीश प्रसाद को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनवाया। उस समय बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। वे राम मनोहर लोहिया एवं श्रीमती इंदिरा गाँधी की इच्छा के विरुद्ध बिहार में पहले पिछड़े समाज के मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे। परन्तु विधानसभा में बहुमत के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल एम.ए.एस अयंगार रांची जाकर बैठ गए और मंडल जी को शपथ दिलाने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि बीपी मंडल बिहार में बिना किसी सदन के सदस्य बने 6 महीने तक मंत्री रह चुके है।
परन्तु बी.पी. मंडल ने राज्यपाल को चुनौती दी और इस परिस्थिति से निकलने के लिए तय किया गया कि सतीश प्रसाद सिंह ( कोयरी/मौर्य समुदाय से) मुख्यमंत्री बन कर इस्तीफा देंगे और वे बने भी। जिससे बी.पी. मंडल के मुख्यमंत्री बनने में आ रही अड़चन दूर हो।उन्हीं दिनों बरौनी रिफायनरी में तेल का रिसाव गंगा में हो गया और उसमें आग लग गयी. बिहार विधान सभा में पंडित बिनोदानंद झा ने कहा कि शूद्र मुख्यमंत्री बना है तो गंगा में आग ही लगेगी! इस प्रकरण का साक्ष्य बिहार विधानसभा के रिकार्ड में है। इस उस समय के राजनीतिक-सामाजिक वातावरण का अंदाजा लगाया जा सकता है. इससे पहले बी.पी. मंडल ने यादवों के लिए विधान सभा में ‘ग्वाला’ शब्द के प्रयोग पर आपत्ति की थी। सभापति सहित कई सदस्यों ने कहा कि यह असंसदीय कैसे हो सकता है क्योंकि यह शब्दकोष में लिखा हुआ है। मंडल ने कुछ गालियों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये भी तो शब्दकोष (डिक्शनरी) में है, फिर इन्हें असंसदीय क्यों माना जाता है। सभापति ने मंडल की बात मानते हुए, यादवों के लिए ‘ग्वाला’ शब्द के प्रयोग को असंसदीय मान लिया।
1968 में उपचुनाव जीत कर बी.पी. मंडल पुनः लोकसभा सदस्य बने. 1972 में वे मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर मधेपुरा लोक सभा से सदस्य बने। 1977 में जनता पार्टी के बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते लालू प्रसाद को कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिंह के विरोध के बावजूद छपरा से लोकसभा टिकट मंडल जी ने ही दिया। 1 जनवरी, 1979 को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने बी.पी. मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिस जबाबदेही को उन्होंने बखूबी निभाया। इस रिपोर्ट को लाख कोशिश के बावजूद सर्वोच्च न्यायलय में ख़ारिज नहीं किया जा सका। उनके योगदान का सही मूल्यांकन होना अभी बाकी है।