श्री कृष्ण जन्माष्टमी: जीवन में अच्छे गुणों को अपनाकर तथा आस्था, भक्ति और विश्वास के साथ त्यौहार मनाया जाए तो उसके साथ कोई न कोई ऐतिहासिक या धार्मिक मान्यता जुड़ी होती हैः-
दिल्लीः श्री कृष्ण जन्माष्टमी सुख-समृद्धि की कामना करते हुए दैहिक, दैविक और भौतिक बाधाओं से मुक्ति के लिए मनुष्य का धर्मपरायण होना जरूरी है । ईश्वर की पूजा उपासना करने से जो आत्मबल मिलता है उससे शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार होता है और मनुष्य का आत्मविश्वास भी बढ़ता है । प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने धर्म के प्रति आस्थावान होना चाहिए ।
धर्म और संस्कृति मानव जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम है । आस्था , श्रद्धा और विश्वास समेटे जब कोई पर्व-त्योहार मनाया जाता है तो उसके पीछे ऐतिहासिक अथवा धार्मिक आस्था जुड़ी होती है । पर्व-त्योहार के प्रति मनुष्य की आस्था उसके सफल जीवन की परिकल्पना है । जब मनुष्य किसी विशेष पर्व-त्योहार के प्रति आस्थावान होकर उसे मनाता है तो वह अपने अतीत के गौरवशाली इतिहास को भी याद करता है साथ ही नई पीढ़ी को भी यह दायित्व सौंपता है कि आने वाले भविष्य में वह अपने संस्कारों को न भूलें और उसे संजोकर रखे ।
धार्मिक त्यौहार मनाने का उद्देश्य अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करनाः-
धार्मिक त्योहार को मनाने का मकसद अपने धर्म की रक्षा और संस्कृति की सुरक्षा करना है । इसी मार्ग पर चलने से ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है । जो व्यक्ति अपने धर्म के प्रति आस्थावान नहीं है उसे सांसारिक सुखों का सुख नहीं मिलता और जीवन की अंतिम यात्रा पर जाने पर उसे सांसारिक मोहमाया से मुक्ति भी नहीं मिलती । धर्म की रक्षा करना और उसका प्रचार-प्रसार करना हर आस्थावान नागरिक का कर्तव्य है । धार्मिक आस्था से मनुष्य का मन शांत और स्थिर रहता है इससे समाज में शांति, भाईचारा और सद्भावना बनी रहती है । परन्तु जब कभी धर्म और संस्कृति खतरे में पड़ती है पड़ती है और पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ जाता है तो उससे छुटकारा दिलाने के लिए दैवीय शक्तियों का अवतरण होता है ।
श्री कृष्ण के जन्म का उद्देश्य और उनकी रासलीलाएः-
द्वापर युग में मथुरा के क्रूर व अत्याचारी राजा कंस एक आकाशवाणी के आधार पर अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया । कंस का अत्याचार मथुरा और आसपास के क्षेत्रों में फैला हुआ था । लोग कंस के अत्याचारों से त्रस्त थे । कंस के अत्याचारों की सीमा से मुक्ति दिलाने के लिए ही देवकी के आठवें गर्भ से संवत 3168 को भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि ठीक 12 बजे योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण का अवतार हुआ । यह दिन हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है । इस दिन पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल बना होता है और मंदिरों में भजन-कीर्तन से वातावरण गुंजायमान हो उठता है । श्रीकृष्णोपासना का प्रमुख केन्द्र ब्रज में यहां जन्माष्टमी की धूम श्रीकृष्ण की छठी पूजने तक निरंतर जारी रहती है ।
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन हमारे धार्मिक गौरवशाली इतिहास को दर्शाती है । भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं अत्यंत चमत्कारिक रही हैं । भगवान श्री कृष्ण का चरित्र बहुआयामी है । बालरूप में वह मैया यशोदा को मातृत्व सुख देते हैं और ग्वाल-बालों के मित्र के रूप मेें राक्षसों का वध करते हैं । भगवान श्री कृष्ण एक निर्भीक , निडर और साहसी व्यक्तिव के धनी थे । घमंड का मानमर्दन करना और शरणागत की रक्षा करना उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था । देवराज इन्द्र के घमंड को चूर कर श्री कृष्ण ने यह संदेश दिया किया श्रेष्ठता बड़े होने से नहीं बल्कि उपयोगी होने से होती है । गिरिराज गोवर्धन की पूजा से यह साबित होता है कि हमारे लिए जो उपयोगी है वहीं श्रेष्ठ है ।
भगवान श्री कृष्ण लगभग 120 वर्षों के अपने जीवन काल में अनेक लीलाएं की । कंस के वध से पूर्व भगवान श्री कृष्ण अपने बाल्यकाल में खेल-खेल में अनेक राक्षसों का वध किया । श्रीकृष्ण का स्वरूप बेहद चमत्कारिक रहा है । उन्होंने ने ब्रज में महारासलीला के माध्यम से गोपियों के अंहकार और काम के घमंड को समाप्त कर निष्काम प्रेम को परिभाषित किया । महारासलीला भगवान श्री कृष्ण की श्रेष्ठतम लीला है ।
शास्त्रों में *’कृष्णावतार’* को पूर्ण अवतार माना गया है । श्रीकृष्ण ने संसार को कर्मयोग की शिक्षा दी। उन्होंने ने जन-मानस को यह सिखाया कि मनुष्य के लिए कर्म ही सर्वोपरि है । मित्र के प्रति समर्पण भावना भी उनकी श्रेष्ठ कर्मयोगी होने का परिचायक है । श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवनकाल में अक्रुरजी, सात्यकि द्रौपदी, सुदामा और अर्जुन पांच ऐसे मित्र हुए जिन्हें वह कभी नहीं भूले । पांडवों और कौरवों के मध्य धर्म की स्थापना के 18 तक चलने वाले महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन का साथ दिया । युद्ध के ही दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जिसके बाद धनुर्धर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध लड़ने को तैयार हुए । भगवान श्रीकृष्ण को भविष्य में होने वाले बुरी चीजों के बारे में पहले से ही पता था, जिसके जरिए उन्होंने अर्जुन को माध्यम बनाकर सभी मानव जाति के कल्याण के लिए उपदेश दिया था। गीता के इन उपदेशों के जरिए कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की सारी मुश्किलों को दूर कर सकता है। श्रीकृष्ण के साथ सदैव रहने वाले अपने सारथी सात्यकि से उन्होंने महाभारत के युद्ध के समय कहा था कि अगर मुझे कुछ हो गया तो अक्षौणी नारायणी सेना को संभाल लेना ।
द्रौपदी के चीरहरण के समय उसकी मान-मर्यादा की रक्षा कर श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि नारी सर्वथा पूजनीय है । उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है । अपने सहपाठी सुदामा के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण मित्रता की एक अनूठी मिसाल कायम की।
श्री कृष्ण मानव कल्याण के लिए समर्पित थे, गीता में उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैंः-
भगवान श्री कृष्ण मानव कल्याण के लिए समर्पित थे । उनका दिया हुआ गीता के उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं । पारिवारिक जीवन को अहमियत देना और सांसारिक सुखों को सीमित रखने की प्रेरणा देने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन के उन्हीं संसाधनों का उपयोग करना चाहिए जो उसके लिए जरूरी है । दूसरों के द्वारा स्थापित किसी भी संसाधन का अपने स्वार्थ के लिए उपयोग नी करना चाहिए । दुनिया की सभी वस्तुएं स्थिर नहीं बल्कि प्रवाहमय है । यह आज किसी और की हैं तो कल किसी और की होंगी ।
मनुष्य के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:-
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिआस्ते थ्याचारः स उच्यते॥
अर्थात जो व्यक्ति यह दिखाता है कि वह अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर चुका है लेकिन अगर उसका मन अंदर से चंचल है तो वह व्यक्ति सबसे झूठा और कपटी होता है।
सांसारिक सुखों की अभिलाषा रखने वाले लोगों के लिए श्रीकृष्ण ने कहा है कि वासना, क्रोध, और लालच नर्क के तीन द्वार। शारीरिक सुख के लिए इनका त्याग करना आवश्यक है। अनावश्यक लालच रना दुखों का कारण है । मनुष्य अपने विश्वास से ही सब कुछ निर्मित करता है। मान-सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा सब कुछ विश्वास पर ही निर्भर है । जो मनुष्य जैसा विश्वास करता है वह वैसा ही बन जाता है। जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता हैं। मानव शरीर नश्वर है । आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने आप को भगवान के श्रीचरणों में समर्पित करें। सांसारिक मोहमाया से मुक्ति पाने का यही सबसे उत्तम सहारा है, जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त रहता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हमारे लिए काम, क्रोध , मोहमाया, लालच, वासना इत्यादि को दूर करना का श्रेष्ठ पर्व है । श्री कृष्ण की शिक्षाओं को अंगिकार कर मनुष्य अपना जीवन सफल और कल्याणकारी बना सकता है । इसके लिए यह जरूरी है कि मनुष्य नीति विषयक ज्ञान रूपी गीता के उपदेशों का पान करें ।
आर सी यादव