श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रस्तुत है, एक कविता- हे कृष्ण तुमको मैं क्या लिखूंः-
प्रेम का सागर लिखूं
गोप का ग्वाल लिखूं
या चेतना का चिंतन लिखूं
प्रीति की गागर लिखूं
या आत्मा का मंथन लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
ज्ञानियों का गुंथन लिखूं
या गाय का ग्वाला लिखूं
कंस के लिए विष लिखूं
या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
पृथ्वी का मानव लिखूं
या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं
चेतना चिंतक लिखूं
या संतृप्त देवेश्वर लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
जेल में जन्मा लिखूं
या गोकुल का पलना लिखूं
देवकी की गोदी लिखूं
या यशोदा का ललना लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
गोपियों का प्रिय लिखूं
या राधा का प्रियतम लिखूं
रुक्मणि का श्री लिखूं
या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
देवकी का नंदन लिखूं
या यशोदा का लाल लिखूं
वासुदेव का तनय लिखूं*
या नंद का गोपाल लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
नदियों-सा बहता लिखूं
या सागर-सा गहरा लिखूं
झरनों-सा झरता लिखूं
या प्रकृति का चेहरा लिखूं
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
आत्मतत्व चिंतन लिखूं
या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं
स्थिर चित्त योगी लिखूं
या यताति सर्वात्मा लिखूं
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
कृष्ण आप पर क्या लिखूं???
कितना लिखूं???
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित,
चाहे मै जितना लिखूं!!
अखंड ब्रह्मांड के नायक, योगेश्वर श्री कृष्ण-कन्हैया के जन्मोत्सव, जन्माष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं, बहुत-बहुत बधाई।