ॐ शिवगोरक्ष योगी आदेशः-
।। पगलु वाणी ।।
जब भी साधक कोई साधना करे तो पहले उस साधना और संबंधित देव के विषय में अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए ।
सात्विक साधना यदि सफल ना भी हो या कोइ त्रुटि हो जाए तो साधक पर कोई नकारात्मक प्रभाव नही पड़ता,
यदि पड़े भी तो वो क्षणिक प्रभाव होता है ।
किन्तु तामसिक या शमशान साधना में यदि त्रुटि हो जाती है तो साधक का बड़ा अहित हो सकता है ।
कुछ उदाहरण तो मैंने स्वम देखे है,
जिनमे साधकों की मानसिक स्तिथि बिगड़ गयी ।
और एक बात कभी इष्ट के प्रत्यक्षीकरण यानी साक्षात दर्शन की कामना के उद्देश्य से जप नही करना चाहिए,
क्योंकि आज हमारा शरीर इस योग्य नही की देव शक्तियों के तेज को सहन कर सके ।
पहले स्वम को गुरु आज्ञा अनुसार निरंतर जप और संयम से मज़बूत बनाये,
उसके बाद समर्थ गुरु के सानिध्य और मार्गदर्शन में ही ऐसी साधना करे ।
क्योंकि रेत की जमीन पर महल खड़े नही होते,
नींव कमज़ोर हो तो इमारत ज्यादा समय नही खड़ी रहती ।
साधना क्षेत्र में उताबलापन हमेशा हानिकारक होता है,
शीर्घ सिद्धि की कामना उत्तम कोटि के साधक का काम नही ।
और अंतिम बात दुसरो के अहित कामना हेतु की गई साधना अंततः स्वम को दुःख देती है,
और अंत परिणाम दुःखद रहते है ।
धीरे धीरे जप, ध्यान और गुरु मार्गदर्शन द्वारा अपने आपको इस योग्य बनाये कि इष्ट स्वम दर्शन देने आये ।।
ना सिद्धि की चाहत कोई दिल मे ना है कामना अब कि स्वर्ग में निवास रहे ।
बस उस्ताद चरण शरण मिले पगलु मुक्ति हो इस जन्म में यही प्रयास रहे ।।
शिवगोरक्ष कल्याण करे ।
शिवशक्ति भक्ति, शक्ति, मुक्ति, सद्बुद्धि दे ।
अजब यदुवंशी