उत्तरौला का दुख हरण नाथ मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं से है,परिपूर्ण…

ऐतिहासिक एवं पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है उतरौला का दुःख हरण नाथ मंदिर:-

उतरौला: का दु:खहरणनाथ मंदिर अपने आप में एक बड़ा और विस्तृत इतिहास समेटे हुए है। यहाँ पर शिवरात्रि और सावन में मंदिर में लगने वाली भक्तों की भीड़ इसका प्रमाण देती है। पूरे सावन महीने के दौरान कई बार यहाँ पर कांवड़ियों की भीड़ लगती है और राप्ती के जल से औघड़दानी आदिशिव का जलाभिषेक करतें है। इसी क्रम में सावन माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के अवसर पर आज मंगलवार को हजारों की संख्या में कावणियों ने राप्ती नदी से जल लाकर औघड़ दानी भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक किया।जिसमें भारी संख्या में महिलाएं पुरुष बच्चे शामिल हुए ।

क्या है मंदिर का इतिहास:-

इस बाबत मंदिर के महंत मयंक गिरि बताते हैं कि जहां पर आप यह मंदिर देख रहे हैं वह पहले जंगल था, यहाँ पर बलरामपुर से एक जयकरन गिरि नाम के संत आए थे, जिन्हें रात में एक स्वप्न आया कि टीले और जंगल के नीचे एक शिवलिंग है। जब यह बात राजा तक पहुंची तो उन्होंने संत जयकरन गिरि को अपने दरबार में बुलाया लेकिन वह नहीं गए, जिसके बाद यहाँ के राजा खुद चलकर आए और संत से बात करके यथास्थान खुदाई आरंभ करवाई। वह कहते हैं संत के स्वप्न के अनुसार वहाँ से एक भव्य भूरे रंग शिवलिंग निकला, जो बीचोबीच से मुड़ा हुआ था। वह कहते हैं कि जब इस बात का पता उतरौला के नवाब नेवाद खान को पता चला तो उसने हाथियों कि मदद से शिवलिंग को खिंचवाकर राप्ती नदी में फिकवा दिया, लेकिन अगली सुबह फिर शिवलिंग अपने स्थान पर मिला।

इस शिवलिंग में बीच से कटे होने का निशान है। इस पर मयंक गिरि कहते हैं कि उतरौला के नवाब को जब अगले दिन यह शिवलिंग फिर उसी स्थान पर मिला तो उसने हिन्द के बादशाह औरंगजेब के कहने पर उसे आरी से बीचोंबीच से कटवाना चाहा, लेकिन जैसे ही आरी का पहला धार चला, शिवलिंग से खून की धार बहने लगी। इसके बाद नवाब उतरौला नेवाद खान से उसी स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण शुरू करवाया, जो साल 1928 में बन कर तैयार हुआ। मंदिर कहते हैं कि यह शिवलिंग उत्तर पूर्व के कोने यानि हिमालय की तरफ झुका हुआ है। वह कहते हैं कि पूरे देश में ऐसा शिवलिंग और कहीं नहीं है। वह कहते हैं कि यह शिवलिंग अपने आप निकला हुआ है इसलिए यह भी अनोखा और अद्वितीय है।

भक्तों की लगती है भारी भीड़:-

महंत कहते हैं कि शिवरात्रि और सावन में यहां हजारों किन संख्या में श्रद्धालु आते है।उन्होंने बताया यहाँ पर कजलीतीज, शिवरात्रि, दशहरा, दीपावली, होली व अन्य तीज-त्योहारों में भी भारी भीड़ होती है। यहाँ साल भर में कई मेलों का आयोजन किया जाता है। लोग यहाँ आकार भगवान से अपनी मिन्नतें करते हैं और आदिशिव भगवान दु:खहरणनाथ अपने हर भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे फल देते हैं। वह कहते हैं कि इसके अलावा यहाँ पर माता बालासुंदरी का भी एक मंदिर है, जहां पर नवरात्रों में विशेष पूजन का कार्यक्रम किया जाता है। यहाँ पर लोग कराह प्रसाद (हलवे का प्रसाद) का आयोजन करते हैं और माता अपने भक्तों को तरक्की देती हैं। इसके अलावा यहाँ का हनुमान मंदिर और पोखरा भी विशेष महत्व रखता है। यही वजह है कि यहाँ पर सालों से बड़े मेलों का आयोजन होता है।

आज मंगलवार को हजारों की संख्या में कावंड़ियों के द्वारा भोले नाथ को जलाभिषेक करने के दौरान मंदिर की व्यवस्था आर0एस0एस0 कार्यकर्ताओं और दुःख हरण नाथ मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने संभाल रक्खा था । जिसमें संतोष कुमार श्रवण, राजेश कुमार गुप्ता उर्फ मोनू गुप्ता, अभिमन्यु,हर्षवर्धन सिंह,आर एन गुप्ता,राम नरेश गुप्ता शिवकुमार ने व्यवस्था को संभाल रक्खा था।

सुशील श्रीवास्तव

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